फरार रह चुके विधायक के सिर पर भी सजा मंत्री पद का ताज. जी हां, 3C यानी Crime, Corruption और Communalism से कभी समझौता नहीं करने की बात करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, नई सरकार में पहले ही दिन इससे समझौता करते दिखाई दे रहे हैं. नीतीश कुमार ने खुद के द्वारा करप्शन के आरोप में घिरे तारापुर के विधायक को वर्ष 2017 में पार्टी से निष्कासित करने के बावजूद नई सरकार में मंत्री बनाकर उनका महिमा मंडन किया।
बिहार सरकार में पहली बार मंत्री बनाए गए मेवालाल चौधरी को आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिक्षा जैसा अहम विभाग सौंपा. हालांकि मेवालाल पर अतीत में लगे आरोपों को लेकर राष्ट्रीय जनता दल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस फैसले पर सवाल उठाए हैं. मेवालाल खुद तो अपने ऊपर लगे आरोपों से जुड़े सवाल टाल गए लेकिन जेडीयू ने उनका बचाव करते हुए उनपर लगे आरोपों को साजिश बताया है.
मेवालाल चौधरी पर असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में धांधली का आरोप है. इस बाबत जब उनसे पूछा गया तो वह कैमरे से बचते नजर आए. ‘बिहार तक’ से बातचीत में मेवालाल ने कहा कि इन सवालों का अभी कोई औचित्य नहीं है. ये सब कुछ नहीं है.मेवालाल ने आरोपों से जुड़े सवाल टालते हुए कहा कि आप विकास पर बात कीजिए, किस तरह से राज्य में विकास हो, चौतरफा विकास हो, किस तरह की कनेक्टिविटी हो, बेहतर शिक्षा और कृषि हो. आज हमें विकसित राज्य बनाने पर बात करनी है. हमारे मुखिया का भी यही उद्देश्य है और इसी पर हमारी प्रतिबद्धता है.
वहीं, राष्ट्रीय जनता दल ने मेवालाल को शिक्षा मंत्री बनाए जाने के बाद नीतीश कुमार को घेरा. आरजेडी ने ट्वीट किया, ‘जिस भ्रष्टाचारी MLA को सुशील मोदी खोज रहे थे, उसे नीतीश ने मंत्री बना दिया.’ मेवालाल पर उठ रहे सवालों का जवाब जेडीयू प्रवक्ता अजय आलोक ने दिया.उन्होंने कहा कि इस मामले में हाई कोर्ट में ट्रायल चल रहा है, उसके बाद भी आप हाई कोर्ट पर सवाल उठा रहे हैं. कुशवाहा बिरादरी ने NDA को वोट दिया इसलिए विपक्ष मेवालाल चौधरी को निशाना बना रहा है. गौरतलब है कि मेवालाल चौधरी कुइरी समाज से आते हैं.
सबौर कृषि विश्वविद्यालय में 161 कनीय शिक्षक और वैज्ञानिकों की बहाली में धांधली का आरोप विपक्ष में रहते सुशील कुमार मोदी ने सदन में उठाया था. उनकी मांग पर ही राजभवन ने रिटायर जस्टिस महफूज आलम से गड़बड़ियों की जांच कराई गई थी. इसके बाद जज ने 63 पन्ने की जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी की पुष्टि की थी. इसी आधार पर राज्यपाल सह कुलाधिपति के आदेश पर थाना सबौर में 35/17 नंबर की एफआईआर दर्ज की थी. बाद में पांच गवाहों के बयान दफा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए गए थे. ये बहाली जुलाई 2011 में प्रकाशित विज्ञापन के माध्यम से बाकायदा इंटरव्यू प्रक्रिया के तहत की गई थी. इनके खिलाफ इस मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ था. इनकी अग्रिम जमानत की अर्जी एडीजे राकेश मालवीय ने रद्द कर दी थी.